Wednesday, May 10, 2023

राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस के अवसर पर विद्यालयों का भ्रमण कार्यक्रम

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद, उ0प्र0 द्वारा गुरुवार को टेक्नोलॉजी दिवस के अवसर पर राजकीय विद्यालयों के कक्षा-9-12 के विद्यार्थियों का वैज्ञानिक संस्थानों का भ्रमण कार्यक्रम परिषद द्वारा आयोजित किया गया। 

उक्त भ्रमण कार्यक्रम में परिषद 100 विद्यार्थियों को राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (एन0बी0आर0आई) एवं राष्ट्रीय मत्स्य आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो (एन0बी0एफ0जी0आर0) का भ्रमण परिषद द्वारा कराया गया। उक्त कार्यक्रम में राजकीय जुबिली इण्टर कालेज, लखनऊ, राजकीय कन्या इण्टर कालेज, छोटी जुबिली, रामाधीन सिंह इण्टर कालेज, करामत गर्ल्स इंटर कॉलेज तथा सेंट मैरी इंटर कॉलेज, बुद्धेश्वर पारा  के वि़द्यार्थियों द्वारा प्रतिभाग किया गया। प्रत्येक विद्यार्थियों के समूह के साथ सम्बन्धित अध्यापक भी भ्रमण कार्यक्रम में प्रतिभाग किए । परिषद द्वारा विद्यार्थियों के परिवहन एवं जलपान इत्यादि की व्यवस्था की गई। प्रतिभाग करने वाले सभी विद्यार्थियों को प्रतिभागिता प्रमाण पत्र भी परिषद द्वारा प्रदान किया गया । विद्यार्थियों द्वारा संस्थानों के वैज्ञानिकों से अपने मन में उठ रहे हर सवाल को पूछा और वैज्ञानिकों ने भी हर प्रश्न को सरल भाषा में समझाया । आयोजक के रुप में परिषद से संयुक्त निदेशक गणों में डा0 हुमा मुस्तफा, डाo डीo केo श्रीवास्तव, आईo डीo राम, इनोवेशन ऑफिसर, संदीप द्विवेदी ने इस कार्यक्रम का आयोजन करवाया , सभी विद्यार्थियों और अध्यापकों द्वारा कार्यक्रम को सराहा गया ।


पंचनद क्रिकेट चैंपियनशिप के दूसरे दिन दिखा कंजौसा टीम के बल्लेबाजों का जलवा

पंचनद: चंबल के बीहड़ों में चंबल विद्यापीठ परिवार द्वारा आयोजित ‘पंचनद क्रिकेट चैंपियनशिप’ के दूसरे दिन दो मुकाबले खेले गए। पहले सत्र में हिम्मतपुर और कंजौसा की टीमों के बीच मैच हुआ। कंजौसा टीम ने टास जीतकर गेंदबाजी का फैसला लिया। बल्लेबाजी करने उतरी हिम्मतपुर टीम 12 ओवर में 8 विकेट के नुकसान से 84 रन बनाए। हिम्मतपुर टीम के खिलाड़ी संदीप ने सर्वाधिक 17 रन बनाए। 

जवाब में उतरी कंजौसा टीम ने 9.3 ओवर में ताबड़तोड़ बल्लेबाजी करते हुए 3 विकेट के नुकसान पर 85 रन बनाकर जीत हासिल की। कंजौसा टीम के मुकेश ने सर्वाधिक 32 रन बनाए। कंजौसा टीम के खिलाडी अमित 14 रन बनाकर और 2 विकेट लेकर मैन आफ द मैच रहे। आयोजन समिति से जुड़े अशर्फी पाल और कपिल तिवारी ने अमित को ट्राफी प्रदान की। 

दूसरी पाली में निनावली और माधौगढ़ टीमों के बीच मुकाबला हुआ। इन मैचों में एम्पायर की जिम्मेदारी शशिकांत और सुरजीत ने निभाई। स्कोर बुक आशीष दुबे ने संभाली। 

यह प्रतियोगिता 1857 के क्रांतिकारियों की स्मृति में हो रही है। दूसरे दिन की शुरुआत कराते हुए क्रांतिकारी लेखक डॉ शाह आलम राना ने चंबल अंचल के इटावा जनपद में 1857 के महान क्रांति योद्धा गंधर्व सिंह चौहान का जिक्र करते हुए कहा कि वे इटावा जिले के यमुना-चंबल दोआबा के राजपुर गांव के निवासी थे। क्रांतिवीर गंधर्व सिंह 1857 की क्रांति में उन्होंने प्रारंभ से लेकर अक्टूबर 1858 तक सक्रिय भागीदारी की। 1858 में जिस समय उन्हें 10 वर्ष का कारावास का दण्ड देकर कालापानी भेजा गया, उस समय उनकी आयु 57 वर्ष थी। वे अनेकों युद्धों में परखे हुए वीर थे। उन्होंने निरंजन सिंह चौहान के साथ कानपुर, भोगिनीपुर, चरखारी, कालपी, ग्वालियर आदि के युद्धों में अपना कौशल दिखाया था। 13 दिसम्बर 1857 को क्रांतिकारियों ने जब इटावा पर अधिकार किया था, उस समय उस लड़ाई में उनकी अग्रिम भूमिका रही। गोहानी, चकरनगर, सहसों की लड़ाईयों में भी उन्होंने बड़ा पराक्रम दिखाया था। उनके खिलाफ प्रकरण में निर्णय देते हुए ह्यूम ने लिखा कि अपने गांव राजपुर को 50 मील के घेरे में अंग्रेजी फौजों के खिलाफ लड़े गए हर युद्ध में हिस्सा लिया।

देशवासियों के लिए क्यों विशेष है 11 मई का राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस

सुमित कुमार श्रीवास्तव - वैज्ञानिक अधिकारी

राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस (National Technology Day) हर साल 11 मई को भारत में मनाया जाता है, जिसे शक्ति की वर्षगांठ के रूप में मनाया जाता है। ये दिन भारत की बड़ी उपलब्धियो को याद दिलाता है। 11 मई को राजस्थान के पोखरण परीक्षण श्रृंखला में भारत ने दूसरी बार सफलतापूर्वक परमाणु परीक्षण किया था। इस ऑपरेशन का नेतृत्व डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने किया था और इसे ऑपरेशन शक्ति या पोखरण-2 कहा जाता है। इस उपलब्धि को चिह्नित करने के लिए ही इस दिन को मनाया जाता हैं। उस समय देश के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी थे। दो दिन बाद देश में दो और परमाणु हथियारों का परीक्षण हुआ। इस परीक्षण के साथ ही भारत दुनिया के उन छह देशों में शामिल हो गया, जिनके पास परमाणु शक्ति है। इसी वजह से 11 मई को राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस मनाया जाता है। इसके अलावा कई और अहम तकनीकी क्रांति इसी दिन संभव हुई थी। 

Image Source :- INDIA TV


ऑपरेशन शक्ति के तहत राजस्थान में भारतीय सेना के पोखरण परीक्षण रेंज में तीन सफल परमाणु परीक्षणों के बाद 11 मई 1998 को राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस का जश्न शुरू हुआ। पोखरण परमाणु परीक्षण की सफलता भारत की सुरक्षा व्यवस्था के लिए ब्रह्मास्त्र मिलने जैसा था. भारतीय इतिहास में इस दिन का विशेष महत्व है।

डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम के नेतृत्व में भारत के रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन ने भी इसी दिन स्वदेशी विमान हंस-3 का सफल परीक्षण किया था। हंस-3 को नेशनल एयरोस्पेस लैबोरेटरी ने बनाया था। वह दो सीटों वाला हल्का विमान था। इसका इस्तेमाल पायलटों को प्रशिक्षण देने, हवाई फोटोग्राफी, निगरानी और पर्यावरण से संबंधित परियोजनाओं के लिए होता है।

1 मई 1998 को ही रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) ने त्रिशूल मिसाइल का आखिरी परीक्षण किया था। फिर उस मिसाइल को भारतीय वायुसेना और भारतीय थलसेना में शामिल किया गया था। त्रिशूल जमीन से हवा में मार करने वाले मिसाइल है। यह छोटी दूरी की मिसाइल है।

इसी अवसर पर विज्ञान और प्रौद्योगिकी परिषद , उ0प्र0 के संयुक्त निदेशक श्री आई0डी0 राम द्वारा बताया गया कि परिषद द्वारा प्रत्येक वर्ष तकनीक को बढ़ावा देने के लिए कई कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। इस वर्ष राजकीय विद्यालयों के कक्षा-9-12 के विद्यार्थियों का वैज्ञानिक संस्थानों का भ्रमण कार्यक्रम परिषद द्वारा आयोजित किया जा रहा है जो कि एक अलग प्रकार का शैक्षणिक कार्यक्रम होगा | 


Tuesday, May 9, 2023

द सोशल डेलिमा फिल्म समीक्षा

लेखक : प्रखर श्रीवास्तव 

इस डॉक्यूमेंट्री फिल्म में 2011 और 2012 में फेसबुक के साथ रहे लोग, जैसे इंस्टाग्राम के शुरुआती कर्मचारी , गूगल और यूट्यूब के कर्मचारी, मोज़िला लैब शुरू कर फायर फॉक्स में जाने वाले कर्मचारी तथा 5 साल तक फेसबुक में डायरेक्टर ऑफ मोनेटाइजेशन रहे व्यक्ति , गूगल ड्राइव फेसबुक चैट और माइक बटन बनाने वाले शुरुआती व महत्वपूर्ण सेवा प्रदाताओं का महत्वपूर्ण इंटरव्यू किया है जिन्होंने नैतिक मूल्यों की चिंता और डर के चलते नौकरियां छोड़ी उनके बयान तकनीकी दुनिया की नई नज़र को पेश करने के साथ ही उसका नकारात्मक पक्ष भी प्रभावी रूप से बतलाते हैं |

2 घंटे की इस फिल्म के शुरुवाती दृश्यों में पुस्तक “Ten Arguments for deleting your social media accounts RIGHT NOW” के लेखक जारोन लानियर सवाल उठाते दिखते हैं कि गूगल और फेसबुक अब तक की सबसे कामयाब कंपनियों में से एक है, दूसरों के मुकाबले उनके मुलाजिम कम हैं | उनका एक बड़ा कंप्यूटर पैसे बटोरता है - तो अहम सवाल ये कि इन्हें पैसे दिए क्यों जाए ?”

फ़ायर फॉक्स और मोजेला के पूर्व सहयोगी अज़ा रस्किन का मुफ्त विज्ञापन को लेकर डायलॉग If you're not paying for the product then you are the product अत्यंत प्रभावी था |

फ़ेसबुक और गूगल के पूर्व इंजीनियर जस्टिन रोसेनस्टेन अपने वक्तव्य में कहते हैं कि इंटरनेट पर मौजूद कुछ सेवाएं लगता है कि मुक्त हैं पर वो मुफ्त नहीं होती उन्हें विज्ञापन से पैसा मिलता है | विज्ञापनदाता पैसे इसलिए देते हैं क्योंकि वह चाहते हैं कि बदले में विज्ञापन हमें दिखाया जाए, मतलब विज्ञापनों को हमारा ध्यान बेचा जाता है | अगर आप कहें कि मैं एक करोड़ डॉलर दो तो मैं दुनिया को तुम्हारी इच्छा की दिशा में 1% बदल दूंगा, तो यह मुमकिन है |”

 

फिल्म में सिनेमैटोग्राफी विशेषज्ञों के साथ साक्षात्कारों का मिश्रण है और सोशल मीडिया एल्गोरिदम कैसे काम करती है, इसको नाटकीयता  के साथ प्रस्तुत किया गया है। साक्षात्कारों के बेहतर शूट के लिए संभवत: कैमरा वर्क और स्टैटिक शॉट्स का प्रयोग किया गया है जो कि बिना तकनीकी जानकारी रखने वाले व्यक्तियों के बिना नहीं किया जा सकता |

पूरी फिल्म साक्षात्कार कि शैली में फिल्मायी गई है, एक दृश्य में दिखाया गया है कि एक परिवार खाने की मेज के आसपास इकट्ठा होता है, प्रत्येक सदस्य अपने फोन में तल्लीन रहता है, जबकि उनका खाना ठंडा हो जाता है। कैमरा फोन के क्लोज-अप पर टिका रहता है, जो कि तकनीकी लत के प्रति सामाजिक जुड़ाव को दिखाता है, इस तरह से फिल्म का संदेश पहुंचाने में सिनेमैटोग्राफी ने अपना कर्तव्य अच्छे से निभाया है |

फिल्म में ट्विटर के पूर्व कर्मी जेफ़ सेबेर्ट अपना पक्ष रखते हुए कहते हैं कि लोग इंटरनेट पर जो भी करते हैं उस पर एक नजर है, जो कि पैमाना नापने का काम करती है | आप की हर हरकत को ध्यान से जांच कर रिकॉर्ड किया जाता है, आप किस तस्वीर या वीडियो पर ठहर कर उसे कितनी देर देखते हैं सब का रिकॉर्ड रखा जाता है, उन्हें पता है लोग कब अकेला महसूस करते हैं और कब उदास हैं, देर रात तक क्या करते हैं |”

जिसका समर्थन करते हुए फेसबुक के पूर्व संचालन प्रबन्धक सैंडी पार्किल्स कहते हैं कि आपकी मानसिक तकलीफ से लेकर आपके व्यक्तित्व तक की हर बारीक जानकारी ऐसी मशीनों को खिलाई जाती है जिन्हें ना के बराबर इंसान चलाते हैं और इनकी भविष्यवाणियां बेहतर होते जाती हैं जैसे कि हम क्या करने वाले हैं और हम कौन हैं ?”

 

फिल्म में एडिटिंग और साउंड इफैक्ट का प्रयोग प्रभावी रूप से किया गया है , जो कि फिल्म के समग्र संदेश को बेहतर रूप से दर्शकों तक पहुँचाने में सफल सिद्ध होता है | गंभीर विचारों को आकर्षक रूप में ढालने के लिए एडिटिंग और साउंड इफैक्ट की महत्वपूर्ण भूमिका होती है जिसके माध्यम से जटिल विचार भी सहज रूप से जनता तक पहुँच पाते हैं | फिल्म का साउंड खुशी, दुख और चिंताजनक दृश्यों का साथ देने में कोई भी कोताही करता नहीं दिखता है|

इस फिल्म में कोई पारंपरिक अभिनय शामिल नहीं है। हालांकि, फिल्म में प्रौद्योगिकी और सोशल मीडिया के क्षेत्र में कई विशेषज्ञ शामिल हैं, जिनका फिल्म के दौरान साक्षात्कार किया जाता है। निर्देशन जेफ ओर्लोव्स्की द्वारा किया गया जो चेज़िंग आइस और चेज़िंग कोरल जैसी पर्यावरणीय फिल्मों के लिए जाने जाते हैं |

फिल्म सोशल मीडिया के हानिकारक प्रभावों, विशेष रूप से मानसिक, स्वास्थ्य और लोकतंत्र पर फिल्म पर अपने चिंतनीय संदेश को संप्रेषित करने में सफल दिखाई देती है |

Sunday, May 7, 2023

खेल, अयोध्या बाबू और खोल दो का हुआ सफल मंचन, दिखा बदलते समाज का विद्रूप रूप

इमेन्स आर्ट्स एंड कल्चरल सोसाइटी की ओर से शनिवार शाम, गोमती नगर विपिन खंड स्थित उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी के वाल्मीकि ऑडिटोरियम में तीन नाटकों का प्रदर्शन राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के वरिष्ठ रंगकर्मी सुदीप चक्रवर्ती के निर्देशन में किया गया।

उसमें संजय सहाय का लिखा “खेल”, उमाशंकर चौधरी का लिखा “अयोध्या बाबू सनक गये हैं” और सआदत हसन मंटो का लिखा “खोल दो” का मंचन किया गया। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के पूर्व निदेशक देवेन्द्र राज अंकुर इस संध्या के मुख्य अतिथि थे।

नाटक “खेल” का केन्द्रीय किरदार समाज के मध्यम वर्ग का होता है। वह जीविका के लिए एक वोल्टेज स्टेबलाइजर कंपनी में सेल्समैन होता है। उसे शहर-शहर जाकर अपने विक्रेताओं से बकाया भी वसूलना पड़ता है इसलिए उसे एक शहर से दूसरे शहर रेल यात्रा करनी पड़ती है। एक बार ट्रेन लेट होने पर वह स्टेशन पर आसपास की गतिविधियों में दिलचस्पी लेने लगता है। इसके माध्यम से लेखक ने बहुत ही दिलचस्प रूप में देश की नब्ज पकड़ने का सशक्त प्रयास किया है। नाटक के माध्यम से देश के भ्रष्टाचारी नेताओं से लेकर समाज की रूढ़िवादी सोच तक पर करारा तंज कसा गया।

नाटक “अयोध्या बाबू सनक गये हैं” में दिखाया गया कि उसका केन्द्रीय पात्र एक ईमानदार ग्राम विकास अधिकारी होता है। उसकी पत्नी भी उसी पद पर कार्यरत होती है। उनके सेवा भाव को देखते हुए उनका प्रखंड, आदर्श प्रखंड के रूप में लोकप्रिय हो जाता है। नाटक में उत्तरोत्तर दिखाया गया कि आदर्शता के कारण उनके परिवार को कई बार विपरीत परिस्थितियों से भी जूझना पड़ा। इसके कारण उनका बेटा संस्कारों के विपरीत निकल जाता है। वह मां की मृत्यु की कामना करता है ताकि उसे नौकरी मिल जाए। आखिरकार उपेक्षा का शिकार मां का इंतकाल हो जाता है। 

नाटक “खोल दो” में देश के विभाजन का दौर दर्शाया गया। कथानक के अनुसार बूढ़ा सिराजुद्दीन जिसकी पत्नी का इंतकाल हो जाने के बाद वह अपनी गुमशुदा बेटी सकीना की तलाश करता करता है। नाट्यांत में जब वह मिलती है वह दैहिक शोषण का शिकार होने से मानसिक रूप से बुरी तरह टूट चुकी होती है।

संस्थान के सेक्रेटरी सुदीप चक्रवर्ती ने इस अवसर पर बताया कि सोसाइटी की स्थापना नवम्बर 2002 में हुई थी। इसकी प्रेसिडेंट अर्पिता गोस्वामी और वाइस प्रेसिडेंट अमिताभ श्रीवास्तव हैं। संस्था की ओर से यह आदमी यह चूहे, अंधेर नगरी चौपट राजा, कोर्ट मार्शल, कहानी वापसी, पॉजेब, चीफ की दावत, बड़े भाई साहब, वीकेंड और डेढ़ इंच ऊपर सहित अन्य नाटकों का मंचन किया जा चुका है।

नाटक के प्रमुख पत्रों में दिव्यांशु, सुब्रत रॉय, कल्पना तिवारी, देवांश, मयूरी, , विक्रम कात्याल, वैभव कुमार ने अहम भूमिका अदा की तो वहीं शुभम गौतम ने प्रकाश संचालन, देवांश प्रसाद ने संगीत संचालन, कल्पना, निशा ने वेशभूषा और मुख्य सज्जा के दायित्वों का निर्वाह किया।

Saturday, May 6, 2023

बौद्ध धर्म की ऐतिहासिक धरोहर दर्शाती " तिब्बती चित्रकला प्रदर्शनी "

भगवान बुद्ध की जीवन यात्रा और शिक्षाओं को रोचक रूप से समझाने के लिए उत्तर प्रदेश राज्य संग्रहालय ने बुद्ध जयंती के अवसर पर तेरह दिवसीय तिब्बती बौद्ध चित्रकला प्रदर्शनी का आयोजन किया , जहाँ उनके जीवन चरित्र को प्राचीन काल से विभिन्न कला रूपों में 1200 से अधिक बौद्ध कलाकृतियों के माध्यम से चित्रित किया गया है | जो कि आम जन के लिए 15 मई तक उपलब्ध रहेगी |

संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी
के छात्रों को प्रदर्शनी दिखाती संग्रहालय कर्मी

आजमगढ़ से प्राप्त गुप्त राजवंश के दौरान 5वीं ई का लोहे से बना और सोने से पोलिश हुआ "बुद्ध मस्तक" आकर्षण का केंद्र है, जो कि भारतीय इतिहास में दुर्लभ है, इसे 1995 और 2005 में फ्रांस की कला प्रदर्शनी में भेजा गया था | कुछ मूर्तियों में उसके निर्माण की तिथि और उसे बनाने वाले मूर्तिकार और संरक्षण देने वाले राजा का नाम भी उल्लेखित हैं, लगभग 1600 वर्ष पूर्व गुप्तकाल में लाल बलुआ पत्थर से निर्मित यशविहार बुद्ध ऐसी ही एक मूर्ति है।

संग्रह में एक अन्य आकर्षण बुद्ध की 11 वीं शताब्दी की बलुआ पत्थर की मूर्ति है, जिसमें दोनों ओर कमल और त्रिशूल है और एक शेर पर बैठे हैं, इस मूर्ति को सिंघानाद अवलोकितेश्वर कहा जाता है। मूर्ति पर नागरी लिपि में शिलालेख हैं, जिस पर मूर्तिकार 'छितनक' का नाम उल्लेखित है |

राज्य संग्रहालय के निदेशक आनंद कुमार सिंह ने बताया कि "ऐसे कार्यक्रम देश के विभिन्न संग्रहालयों में  जन सहभागिता के लिए सामाजिक अवसरों पर किए जाते हैं, बुद्ध जयंती के अवसर पर ऑयल पेंटिंग,  गुप्त व कुषाण राजाओं के सिक्के व ऐतिहासिक मूर्तियां आदि प्रदर्शनी का हिस्सा हैं, आगँतुकों को ये सब एक छत के नीचे प्रदर्शित किया गया है | दर्शकों की तादात बताती है कि भगवान बुद्ध और उनके चलाएं बौद्ध धर्म की प्रासंगिकता वर्तमान संदर्भों में बढ़ी है  प्रदर्शनी में बौद्ध सन्यासियों द्वारा प्रारम्भ 'थंका कला ' के प्रति लोगों का विशेष रुझान महसूस किया जा रहा है | संग्रहालय सुरक्षा के प्रति सजग है व लगातार हर उम्र के लोग इस प्रदर्शनी का हिस्सा बनने आ रहे हैं |"

कलाकृतियों को चार दीर्घाओं में प्रदर्शित किया गया है - दो पुरातत्व के हैं और प्रत्येक सजावटी कला और एक पुराने सिक्कों पर आधारित है |


रिपोर्ट - प्रखर श्रीवास्तव

Friday, May 5, 2023

भारतेंदु नाट्य अकादमी में बर्तोल्त ब्रेख्त के नाटकों ने किया न्याय व्यवस्था पर तीखा व्यंग

लखनऊ की भारतेन्दु नाट्य अकादमी में शुक्रवार को नाटक ‘अजब न्याय - गजब न्याय' के मंचन ने दर्शकों का खूब मनोरंजन किया। बीसवीं सदी के प्रसिद्ध जर्मन कवि, नाटककार और नाट्य निर्देशक बर्तोल्त ब्रेख्त के न्याय संबंधी तीन नाटक अभिनय का आधार थे | 

ब्रेख्त अपने नाटकों में शोषण और संघर्षों की पड़ताल करते हुए कई बार कई सवाल उठाते हैं, आर्थिक और सामाजिक न्याय के सवाल हों या व्यवस्था, इंसानियत और नैतिकता के सवाल क्यों न हों |

भारतेंदु नाट्य अकादमी के विद्यार्थियों ने ब्रेख्त के नाटक • गुड वुमेन ऑफ़ शेजुआँ • एक्सेप्शन एवं द रुल • काकेशियन चाक सर्किल में मौजूद अदालती दृश्यों का कोलाज बना कर न्यायिक प्रक्रिया में मौजूद इंसानी संवेदनाओं के द्वन्द को बेहद मुखरता व भावुकता के साथ प्रस्तुत किया |

नाटक का पहला हिस्सा जहाँ इंसानियत की बात करता है, तो वहीं दूसरा और तीसरा भाग नैतिकता और न्याय का रुख करता है | पहले नाटक में देवता स्वयं जज बनकर आते हैं, दूसरे में पूंजीवाद व्यवस्था का पोषक जज होता है तो तीसरे भाग में क़ानून से अनभिज्ञ, लेकिन इंसानियत के पक्ष में खड़े होने वाला आम आदमी जज की भूमिका अदा करता है |

कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में सेवानिवृत्त डॉ अनिल रस्तोगी (चर्चित अभिनेता), के जी एम यू अस्पताल के मेडिसिन विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ एके त्रिपाठी और अपर मुख्य सचिव होमगार्ड अनिल कुमार मौजूद रहे |

इन मशहूर नाटक का रूपांतरण जर्मन नेशनल थिएटर से प्रशिक्षित, नाट्य निर्देशक अतुल तिवारी , टाइम्स टीवी, टीवी टुडे के पूर्व सहयोगी अमिताभ श्रीवास्तव तथा बीबीसी की विदेश प्रसारण सेवा में सलग्न रहे नीलाभ ने किया है तो वहीं निर्देशन  भारतेंदु नाट्य अकादमी के पूर्व निदेशक सूर्य मोहन कुलश्रेष्ठ द्वारा किया गया | 

नाटक के प्रमुख पत्रों में वैष्णवी सेठ, नैनसी सेठ, अभिषेक कुमार, ईश्वर नाना पाटिल, दिव्य कुमार शुक्ल, श्यामा मन्ना, सौरभ खरे,  तन्वी श्रीवास्तव, सचिन पटेल आदि ने भूमिका अदा की | 

रोमांच से भरा ये नाटक ब्रेख्त कि शैली का भारतीयकरण जैसा है जो कि न्याय की नई परिभाषा पेश करता है, जिसकी प्रस्तुति दर्शकों के लिए लगातार दो दिवस शाम 7 बजे भारतेंदु नाट्य अकादमी के सभागार में की जाएगी  | 


रिपोर्ट : प्रखर श्रीवास्तव

लोक संस्कृति के संरक्षण पर हुआ कार्यशाला का आयोजन

लुप्त हो रही लोक संस्कृति के संरक्षण के लिए मुनाल संस्था द्वारा शुक्रवार शाम को वजीर हसन रोड स्थित बुद्ध बसंती सभागार में कार्यशाला का उद्घाटन किया गया जिस दौरान मुनाल संस्था के संस्थापक दशरथ सिंह बिष्ट व वीरा बिष्ट की स्मृति में लोक नृत्य व लोक गीत का मंचन किया गया |

कार्यशाला के तहत प्रशिक्षित प्रतिभागियों को गढ़वाली, कुमाऊनी, अवध, ब्रज, बुंदेली, भोजपुरी लोक गीतों का प्रशिक्षण दिया गया, प्रतिभागियों ने गढ़वाली गीत 'बोलआंदा बद्री',  'अवध का गीत सासु की बीनी दरिया रे', 'भोजपुरी अंगना न सोहे राजा' तथा 'छोटी सी किशोरी' , 'आज तो अवध में बधाई बाजे' जैसे गीतों की प्रस्तुति से समा बांधा |

लोक गायन की कार्यशाला यशभारती सम्मानित वरिष्ठ लोक गायिका ऋचा जोशी के संयोजन में हुई तो वहीं उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी से सम्मानित मुनालश्री विक्रम बिष्ट द्वारा लोक नृत्य का प्रशिक्षण दिया गया | कार्यशाला में सभी आयु वर्ग के प्रतिभागियों ने हिस्सा ले कर प्रशिक्षण प्राप्त किया |

मुख्य अतिथि समाजसेविका माया आनंद ने अपने विचार रखते हुए कहा इस तरह की कार्यशाला होती रहनी चाहिए जिससे हमारी संस्कृति हमारी पहचान बन सके | 

संस्थान के निदेशक मुनालश्री विक्रम बिष्ट ने बताया कि उत्तराखंड के लुप्त होते राज्यपक्षी "मुनाल" के नाम पर, लुप्त होती लोक संस्कृति के संरक्षण के उद्देश्य से 1978 में मुनाल संस्था की शुरुवात की गई , जन सहयोग व संस्कृति विभाग के समर्थन के चलते वर्तमान में हर आयु वर्ग के नागरिक संस्थान के सदस्य हैं | 

इस अवसर पर कार्यशाला में देवेश्वरी पवार, प्रमिला जोशी, शैलजा श्रीवास्तव, कंचन शर्मा, प्रदीप पटेल,चंदू जोशी , मधु माथुर, आशा मौर्य आदि मौजूद रहे |

Thursday, May 4, 2023

सूर्य या चंद्र की खगोलीय घटना होने की संभावना

 सुमित कुमार श्रीवास्तव  (वैज्ञानिक अधिकारी)

भारत वर्ष में उपच्छायी चंद्र ग्रहण दिनांक 5 मई 2023 को रात्रि में 8.45 से 1.02 बजे तक दिखाई देगा। इसे ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका, साउथ/ईस्ट अमेरिका, यूरोप और सम्पूर्ण एशिया में देखा जाएगा । अगला सूर्य ग्रहण 14 अक्टूबर को तथा अगला चंद्र ग्रहण दिनांक 29 अक्टूबर 2023 को आंशिक चंद्र ग्रहण होगा ।

चंद्रमा पृथ्वी का एक एकलौता प्राकृतिक उपग्रह है, जिसे आसानी से पृथ्वी से रात के समय देखा जा सकता है और करीब होने के कारण रात्रि आकाश का सबसे चमकदार पिंड होता है। चंद्रमा की अपनी स्वयं की कोई रोशनी नहीं होती है और यह सूर्य की रोशनी से ही प्रकाशमान होता है । पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है और उसी तरह से चंद्रमा पृथ्वी की परिक्रमा करते हुए सूर्य की परिक्रमा करता है। चंद्रमा का परिक्रमा पथ पृथ्वी के तल से लगभग 5° झुका हुआ है ।

इन तीनों पिंडो के एक दूसरे की परिक्रमा करने के कारण कभी कभी तीनों पिंड एक सीधी रेखा में और एक ही तल संरेखित हो जाते है। इस स्थिति को सिज्गी (Syzgee) की स्थिति कहते है । इस स्थिति में या तो सूर्य ग्रहण की खगोलीय घटना घटित होती है या चंद्र ग्रहण की खगोलीय घटना घटित होती है ।

चंद्र ग्रहण में सूर्य एवम् चंद्रमा के मध्य पृथ्वी आ जाती है जिसके फलस्वरूप पृथ्वी की छाया पूर्णिमा के दिन चंद्रमा पर पड़ती है । जिससे चंद्रमा की रोशनी क्षीण होती नजर आती है या प्रकाश के पृथ्वी के वायुमंडल से प्रकीर्णन के कारण सुर्ख लाल रंग का चंद्रमा भी नजर आता है ।

सूर्य पृथ्वी से 109 गुना बड़ा है और गोल है इसलिए पृथ्वी की परछाई दो शंकु बनाती है। इस प्रकार पृथ्वी की छाया भी दो प्रकार की होती है ।

1. अंब्रा या मुख्य छाया या प्रच्छाया     2. पेनंब्रा या उपच्छाया

पृथ्वी की मुख्य छाया शंकु के आकार का अंधकार मय क्षेत्र होता है। छाया के अंदर और सबसे गाढ़ा भाग है, जहां प्रकाश स्रोत पूरी तरह से उस पिण्ड या वस्तु से अवरुद्ध है। यदि इस छाया के संपर्क में चंद्रमा आता है तो आंशिक या पूर्ण चंद्रग्रहण लगता है ।

जबकि पेनंब्रल या उपच्छाया, वह क्षेत्र है जिसमें प्रकाश स्रोत केवल आंशिक रूप से ढका होता है। इसका क्षेत्रफल अम्ब्रा के क्षेत्रफल से बड़ा होता है। पेनंब्रा अम्ब्रा को चारों और से घेरा होता है । हल्की छाया वाला क्षेत्र पेनंब्रा क्षेत्र होता है । ग्रहण लगते समय चंद्रमा हमेशा पश्चिम की ओर से पृथ्वी की प्रच्छाया (Umbra) में प्रवेश करता है इसलिए सबसे पहले इसके पूर्वी भाग में ग्रहण लगता है और यह ग्रहण सरकते हुए पूर्व की ओर से निकल कर बाहर चला जाता है।

उपच्छायी चंद्रग्रहण में चंद्रमा के प्रकाश में नग्न आंखों से कोई अंतर दिखाई नही देता । इस घटना को रिकॉर्ड करने के लिए वैज्ञानिक फोटोमेट्री मैथड का प्रयोग करते है और प्रकाश के छोटे छोटे अणुओं या फोटोंस की संख्या,ग्रहण से पूर्व तथा ग्रहण के समय, को काउंट कर तथा तुलना कर के ये बताते है कि ग्रहण में कितने प्रतिशत प्रकाश कम हुआ है । चूंकि प्रकाश कम होने का प्रतिशत बहुत ही ज्यादा कम होता है अतः जन सामान्य को नग्न आंखों से चंद्रमा के प्रकाश में कोई परिवर्तन नहीं दिखाई देता है। 

ज्योतिष में भी इस प्रकार के ग्रहण का कोई सूतक नहीं माना जाता । अगला पेनंबरल चंद्र ग्रहण 24 - 25 मार्च 2024 तथा 20-21 फरवरी 2027 को घटित होगा ।