लेखक : प्रखर श्रीवास्तव
इस डॉक्यूमेंट्री फिल्म में 2011 और 2012 में फेसबुक के साथ रहे लोग, जैसे
इंस्टाग्राम के शुरुआती कर्मचारी , गूगल और यूट्यूब के कर्मचारी, मोज़िला
लैब शुरू कर फायर फॉक्स में जाने वाले कर्मचारी तथा 5 साल तक फेसबुक में डायरेक्टर ऑफ मोनेटाइजेशन रहे व्यक्ति , गूगल
ड्राइव फेसबुक चैट और माइक बटन बनाने वाले शुरुआती व महत्वपूर्ण सेवा प्रदाताओं का
महत्वपूर्ण इंटरव्यू किया है जिन्होंने नैतिक मूल्यों की चिंता और डर के चलते नौकरियां
छोड़ी उनके बयान तकनीकी दुनिया की नई नज़र को पेश करने के साथ ही उसका नकारात्मक पक्ष
भी प्रभावी रूप से बतलाते हैं |
2 घंटे की इस फिल्म के शुरुवाती दृश्यों में पुस्तक
“Ten Arguments for deleting your social media accounts RIGHT NOW”
के लेखक जारोन लानियर सवाल उठाते दिखते हैं कि “गूगल और फेसबुक अब तक की सबसे कामयाब कंपनियों में से एक है, दूसरों के मुकाबले उनके मुलाजिम कम हैं | उनका एक बड़ा
कंप्यूटर पैसे बटोरता है - तो अहम सवाल ये कि इन्हें पैसे दिए क्यों जाए ?”
फ़ायर फॉक्स और मोजेला के पूर्व सहयोगी अज़ा रस्किन
का मुफ्त विज्ञापन को लेकर डायलॉग If you're not paying for the
product then you are the product अत्यंत प्रभावी
था |
फ़ेसबुक और गूगल के पूर्व इंजीनियर जस्टिन
रोसेनस्टेन अपने वक्तव्य में कहते हैं कि “इंटरनेट पर
मौजूद कुछ सेवाएं लगता है कि मुक्त हैं पर वो मुफ्त नहीं होती उन्हें विज्ञापन से पैसा
मिलता है | विज्ञापनदाता पैसे इसलिए देते हैं क्योंकि वह चाहते
हैं कि बदले में विज्ञापन हमें दिखाया जाए, मतलब विज्ञापनों को
हमारा ध्यान बेचा जाता है | अगर आप कहें कि मैं एक करोड़ डॉलर
दो तो मैं दुनिया को तुम्हारी इच्छा की दिशा में 1% बदल दूंगा, तो यह मुमकिन है |”
फिल्म में सिनेमैटोग्राफी
विशेषज्ञों के साथ साक्षात्कारों का मिश्रण है और सोशल मीडिया एल्गोरिदम कैसे काम करती
है, इसको नाटकीयता के साथ प्रस्तुत किया गया है। साक्षात्कारों के
बेहतर शूट के लिए संभवत: कैमरा वर्क और स्टैटिक शॉट्स का प्रयोग किया गया है जो कि
बिना तकनीकी जानकारी रखने वाले व्यक्तियों के बिना नहीं किया जा सकता |
पूरी फिल्म साक्षात्कार कि शैली
में फिल्मायी गई है, एक दृश्य में दिखाया
गया है कि एक परिवार खाने की मेज के आसपास इकट्ठा होता है, प्रत्येक सदस्य अपने फोन में तल्लीन रहता है, जबकि उनका खाना ठंडा हो जाता है। कैमरा फोन के क्लोज-अप
पर टिका रहता है, जो कि तकनीकी लत
के प्रति सामाजिक जुड़ाव को दिखाता है, इस तरह
से फिल्म का संदेश पहुंचाने में सिनेमैटोग्राफी ने अपना कर्तव्य अच्छे से निभाया है
|
फिल्म में ट्विटर के पूर्व कर्मी
जेफ़ सेबेर्ट अपना पक्ष रखते हुए कहते हैं कि “लोग इंटरनेट पर जो भी करते हैं उस पर एक नजर है, जो कि पैमाना नापने का काम करती है | आप की हर हरकत को ध्यान से जांच कर रिकॉर्ड किया जाता
है, आप किस तस्वीर
या वीडियो पर ठहर कर उसे कितनी देर देखते हैं सब का रिकॉर्ड रखा जाता है, उन्हें पता है लोग कब अकेला महसूस करते हैं और कब उदास
हैं, देर रात तक क्या
करते हैं |”
जिसका समर्थन करते हुए फेसबुक के
पूर्व संचालन प्रबन्धक सैंडी पार्किल्स कहते हैं कि “आपकी मानसिक तकलीफ से लेकर आपके व्यक्तित्व तक की हर
बारीक जानकारी ऐसी मशीनों को खिलाई जाती है जिन्हें ना के बराबर इंसान चलाते हैं और
इनकी भविष्यवाणियां बेहतर होते जाती हैं जैसे कि हम क्या करने वाले हैं और हम कौन हैं
?”
फिल्म में एडिटिंग और साउंड इफैक्ट का प्रयोग
प्रभावी रूप से किया गया है , जो कि फिल्म के समग्र संदेश को
बेहतर रूप से दर्शकों तक पहुँचाने में सफल सिद्ध होता है | गंभीर
विचारों को आकर्षक रूप में ढालने के लिए एडिटिंग और साउंड इफैक्ट की महत्वपूर्ण भूमिका
होती है जिसके माध्यम से जटिल विचार भी सहज रूप से जनता तक पहुँच पाते हैं |
फिल्म का साउंड खुशी, दुख और चिंताजनक दृश्यों
का साथ देने में कोई भी कोताही करता नहीं दिखता है|
इस फिल्म में कोई पारंपरिक
अभिनय शामिल नहीं है। हालांकि, फिल्म
में प्रौद्योगिकी और सोशल मीडिया के क्षेत्र में कई विशेषज्ञ शामिल हैं, जिनका फिल्म के दौरान साक्षात्कार किया
जाता है। निर्देशन जेफ ओर्लोव्स्की द्वारा किया गया जो चेज़िंग आइस और चेज़िंग कोरल
जैसी पर्यावरणीय फिल्मों के लिए जाने जाते हैं |
फिल्म सोशल मीडिया के हानिकारक
प्रभावों, विशेष रूप से
मानसिक, स्वास्थ्य और लोकतंत्र
पर फिल्म पर अपने चिंतनीय संदेश को संप्रेषित करने में सफल दिखाई देती है |