भगवान बुद्ध की जीवन यात्रा और शिक्षाओं को रोचक रूप से समझाने के लिए उत्तर प्रदेश राज्य संग्रहालय ने बुद्ध जयंती के अवसर पर तेरह दिवसीय तिब्बती बौद्ध चित्रकला प्रदर्शनी का आयोजन किया , जहाँ उनके जीवन चरित्र को प्राचीन काल से विभिन्न कला रूपों में 1200 से अधिक बौद्ध कलाकृतियों के माध्यम से चित्रित किया गया है | जो कि आम जन के लिए 15 मई तक उपलब्ध रहेगी |
संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी के छात्रों को प्रदर्शनी दिखाती संग्रहालय कर्मी |
आजमगढ़ से प्राप्त गुप्त राजवंश के दौरान 5वीं ई का लोहे से बना और सोने से पोलिश हुआ "बुद्ध मस्तक" आकर्षण का केंद्र है, जो कि भारतीय इतिहास में दुर्लभ है, इसे 1995 और 2005 में फ्रांस की कला प्रदर्शनी में भेजा गया था | कुछ मूर्तियों में उसके निर्माण की तिथि और उसे बनाने वाले मूर्तिकार और संरक्षण देने वाले राजा का नाम भी उल्लेखित हैं, लगभग 1600 वर्ष पूर्व गुप्तकाल में लाल बलुआ पत्थर से निर्मित यशविहार बुद्ध ऐसी ही एक मूर्ति है।
संग्रह में एक अन्य आकर्षण बुद्ध की 11 वीं शताब्दी की बलुआ पत्थर की मूर्ति है, जिसमें दोनों ओर कमल और त्रिशूल है और एक शेर पर बैठे हैं, इस मूर्ति को सिंघानाद अवलोकितेश्वर कहा जाता है। मूर्ति पर नागरी लिपि में शिलालेख हैं, जिस पर मूर्तिकार 'छितनक' का नाम उल्लेखित है |
राज्य संग्रहालय के निदेशक आनंद कुमार सिंह ने बताया कि "ऐसे कार्यक्रम देश के विभिन्न संग्रहालयों में जन सहभागिता के लिए सामाजिक अवसरों पर किए जाते हैं, बुद्ध जयंती के अवसर पर ऑयल पेंटिंग, गुप्त व कुषाण राजाओं के सिक्के व ऐतिहासिक मूर्तियां आदि प्रदर्शनी का हिस्सा हैं, आगँतुकों को ये सब एक छत के नीचे प्रदर्शित किया गया है | दर्शकों की तादात बताती है कि भगवान बुद्ध और उनके चलाएं बौद्ध धर्म की प्रासंगिकता वर्तमान संदर्भों में बढ़ी है प्रदर्शनी में बौद्ध सन्यासियों द्वारा प्रारम्भ 'थंका कला ' के प्रति लोगों का विशेष रुझान महसूस किया जा रहा है | संग्रहालय सुरक्षा के प्रति सजग है व लगातार हर उम्र के लोग इस प्रदर्शनी का हिस्सा बनने आ रहे हैं |"
कलाकृतियों को चार दीर्घाओं में प्रदर्शित किया गया है - दो पुरातत्व के हैं और प्रत्येक सजावटी कला और एक पुराने सिक्कों पर आधारित है |
रिपोर्ट - प्रखर श्रीवास्तव
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