Saturday, December 10, 2022

शानदार शाही समोसे का स्वर्णिम इतिहास

प्रखर श्रीवास्तव 
स्वतंत्र पत्रकार एवं लेखक



गली गांव के छोटे नुक्कड़ चौराहे हों या बड़े मॉल समोसे का जलवा और जरूरत हर जगह बरकरार रहती है या यह भी कहना गलत नहीं होगा कि पिज़्ज़ा और बर्गर की तरह समोसा न अमीरों का खाना है, ना ही गरीबों का , समोसे की शान सभी वर्गों में समान है, इसलिए यह कहना गलत नही होगा कि समोसा पक्का समाजवादी व्यंजन है|

भारत में समोसा 
समोसे की मांग भारत में हर जगह है, और जैसे कहा जाता है कि भारत में हर कुछ दूरी पर पानी का स्वाद बदलता है वैसे ही कुछ दूरी पर इसके स्वाद में भी फर्क आता है | कहीं पापड़ी के करारेपन तो कहीं आलू के सोंधेपन, तेज और हल्के मसाले का फर्क तो आसानी से देखा जा सकता है |
इसका मूल्य व्यय करना भी मानो इतना आसान है कि जैसे लगता है समोसा भारतीय अर्थशास्त्र और नागरिकों की जेबों को भलीभांति समझता हो |
 यह व्यंजन देश में ₹5 से लेकर ₹25 तक बड़ी आसानी से उपलब्ध हो जाता है |
 जैसे कहा जाता है कि हर सफल पुरुष के पीछे एक महिला का हाथ होता है ठीक वैसे ही इस सफल व्यंजन के पीछे इतनी खट्टी मीठी चटनी का भी अहम योगदान होता है |

 समोसे का इतिहास 
पूरी दुनिया में भारतीय व्यंजन के नाम से प्रचलित इस समोसे का जन्म दरअसल कुछ विशेषज्ञों की मानें तो भारत में नहीं बल्कि मध्य एशिया के कुछ प्रदेशों में हुआ था जहाँ इसको शंभूसा कहा जाता था और इसका आकार भी ठीक वैसा नहीं होता था जैसा कि आज हमें देखने को मिलता है |
10वीं और 13वीं शताब्दी के कई ईरानी पाक शास्त्रों में समोसे का उल्लेख है, Tarikh-e-bayagi नामक किताब में समोसे का वर्णन विस्तार से किया गया है |
 मुगल सल्तनत के दौर में अकबरे आईने नामक किताब में अकबर के पसंदीदा व्यंजनों में इस समोसे का भी जिक्र आता है | उस काल के चर्चित कवि अमीर खुसरो ने भी अपने काव्य में समोसे की तारीफ की है 
भारत में व्यंग में कहा जाता है कि समोसे में आलू कहां से आया ?
तो जानकारी के लिए बता दें कि 16वीं शताब्दी में पुर्तगालियों के आलू लाने के बाद ही किसी भी व्यंजन में आलू डाले जाने की शुरुवात हुई |

जिसे हम भारत में समोसा कहते हैं उसे नेपाल में सिंगाड़ा, अफ्रीका में शंभूसा, इसराइल में शंभूसक के नाम से जाना जाता है |

समोसे का वर्तमान और भविष्य
बदलते समय के साथ जहां इसका नाम बदला तो वही काम और कारनामे भी 21वीं सदी के आज के भारत में समोसे की शान बरकरार होने का एक कारण यह भी है कि समय के साथ बड़ी ही रफ्तार से इस व्यंजन ने स्वयं में तब्दीली लाई |
पहले समोसे के अंदर सिर्फ आलू भरा होता था, फिर आलू के साथ ही साथ मटर और तमाम जायकेदार मसाले भरे जाने लगे, फिर जब भारतीय समाज में हर व्यंजन पर पनीर का छिड़काव और भराव की रस्म सी चल पड़ी तो समोसे में भी पनीर भरा जाना संभावित ही था |
वैसे तो कहा जाता है कि परिवर्तन पीड़ादायक होता है, समोसे का आलू से पनीर का यह परिवर्तन समोसे की दुनिया में एक क्रांतिकारी कदम था इसके बाद आज के  मॉडर्न युग में चिल्ली पनीर समोसा, नूडल्स समोसा इटालियन समोसा, गार्लिक समोसा, यहाँ तक चॉकलेट समोसा भी उपलब्ध है | इसकी फेहरिस्त लगातार व्यापारिक दृष्टिकोण और युवाओं की मांग पर बढ़ती जा रही है |
भारत के अलग-अलग प्रदेशों में समोसा अलग-अलग तरीके से बनाया और खाया जाता है | लेकिन सबसे चर्चित और स्वादिष्ट आलू समोसा ही मना गया है |
कई जगह समोसे को तोड़कर उसमें छोले और प्याज डालकर भी काफी लोग लुफ्त उठाते हैं | तो कई जगह समोसा मिष्ठान के रूप में दिखाया जाता है जिसके अंदर गुझिया स्वरूप खोया भरा होता है क्योंकि गर्म चाशनी में डुबोकर परोसा जाता है |